'एटिकेट' का विकास


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भले ही “एटिकेट” शब्द हाल ही में आया है, लेकिन चार्ल्स डार्विन जैसे विकासवादी ने इसे न केवल शिष्टता का सार्वभौमिक गुण माना बल्कि इसके पीछे छिपे के आशय को भी पहचाना। जिस तरह लोगों के चेहरे दृश्य या विचार या शर्म, घृणा, क्रोध, दुःख आदि के प्रति अनुक्रिया करते हैं उसमें उन्होंने एक तरह की सार्वभौमिकता को देखा। ये अभिव्यक्तियां प्रौढ़ता या मानव विकास के किसी भी विशेष स्तर पर नहीं दिखी।

साथ ही, उन्होंने पाया कि बच्चे भी तनाव, दर्द और आनन्द में  उसी तरह से अनुक्रिया करते हैं।

  • वे सभी नवजात शिशु जिनका उन्होंने परीक्षण किया, उनमें से किसी ने भी  खुशी व्यक्त करने के लिए अपनी भौहें नहीं सिकोड़ी न ही उदासी व्यक्त करने के लिए मुस्कराहट का सहारा लिया है।

  • सभी शिशुओं ने एक ही प्रकार की अभिव्यक्ति प्रकट की, मानो इसे उनके डीएनए में टेम्पलेट से पढ़ रहे हो।

इस अवलोकन का प्रयोग करते हुए, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ऐसी अनुक्रियाएँ दूसरों को देखकर नहीं सीखी जाती बल्कि ये तो जन्मजात होती हैं। इसके अलावा, यह निष्कर्ष निकाला गया कि ये अनुक्रियाएं मानव व्यवहार के विकास की परिणाम थी।

एक विख्यात विकासवादी हेलेना कर्टिस, का कहना है कि 'एटिकेट' केवल एक सामाजिक जनादेश ही नहीं था, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला थी। पक्षियों को देखकर वह यह पता लगा सकती थी कि जो लोग विनम्र थे और स्वच्छता का ध्यान रखते थे जीने और प्रजनन करने की सर्वोच्च संभावना थी।

इसी तरह, स्टीवन नेबुर्ग ने अपनी पुस्तक, “हैण्डबुक ऑफ सोशल साइकोलॉजी” में लिखा है कि जानवरों और पक्षियों में उन्होंने यह पाया कि वो भी अपने बच्चों को अपने जीवन के से प्राप्त अनुभवों को सिखाते हैं क्योंकि वो भी चाहते हैं कि नई पीढ़ी शिष्टाचार को बनाये रखे। शिष्टाचार के माध्यम से वे अपनी संतानों को कुछ ऐसे नियम सिखा पाते हैं जिससे उन्हें एक समूह में रहने में मदद मिलती है जहाँ कुछ सदस्य शारीरिक तौर पर उनसे ज्यादा मजबूत होते हैं। यही शिष्टाचार के विकास की शुरुआत थी जहां जानवरों और पक्षियों ने अपने पूर्वजों से प्राप्त शिष्टाचार का पालन करना शुरू कर दिया था और दूसरों के समान व्यवहार को ध्यान में रखकर यह पता लगाया था कि वे किस पर भरोसा कर सकते हैं और किस पर नहीं।

विकास

अंग्रेजी में कहावत है कि “birds of the same feather flock together” जिसका मतलब “चोर का साथी गिरहकट” या “एक ही थैली के चट्टे बट्टे” होता है। इस कहावत में केवल पंख का ही नहीं बल्कि शिष्टाचार का भी जिक्र है। कबूतरों के एक झुण्ड में कई अन्य छोटे-छोटे झुण्ड भी होंगे जो अन्य पक्षियों से सीखे जाने वाले शिष्टाचार पर निर्भर रहते हैं। ऐसा करना उनके लिए लाभप्रद होगा क्योंकि एक ही तरह की मानसिकता वाले पक्षी हमले के समय अपने प्राणों की रक्षा के लिए एक झुण्ड में तबदील हो जाते हैं और अपनी रक्षा के लिए एक झुण्ड में ही रहकर लड़ाई करते हैं।

ऐसे ही लक्षण उन लोगों में भी देखे जा सकते हैं जो घर के नियमों को लेकर बहुत अडिग होते हैं और जहाँ बच्चों को शाम में अंधेरा होने के बाद घर से बाहर रहने की इजाजत नहीं होती है। वे इस व्यवहार को इस तर्क पर उचित ठहरा सकते हैं कि “इज्जतदार परिवार के बच्चों को यह शोभा नहीं देता।” इस प्रकार वे इसे एटिकेट से जोड़ देते हैं और इससे लाभ यह होता है कि उन्हें रात में घर से बाहर घूमने के सम्भावित परिणामों (जैसे- डकैती, हमला आदि) के बारे में चर्चा नहीं करनी पड़ती।

इस प्रकार शिष्टाचार को मानदंडों और विशिष्ट आचरण के समूह के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो अवलोकन और अनुभव से प्राप्त किया गया है जो सुविधा और बेहतर जीवन शैली प्राप्त करने की इच्छा से निर्धारित किए गए थे।



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